इन्द्रियाँ अग्नि की तरह हैं। तुम्हारा जीवन अग्नि के समान है। इन्द्रियों की अग्नि में जो कुछ भी डालते हो, जल जाता है। यदि तुम गाड़ी का टायर जलाते हो, तो दुर्गन्ध निकलती है और वातावरण दूषित होता है। परन्तु यदि तुम चन्दन की लकड़ी जलाते हो, तो चारों ओर सुगन्ध फैलती है। कोई अग
1. यदि शरीर रुपवान हो, पत्नी भी रूपसी हो और सत्कीर्ति चारों दिशाओं में विस्तरित हो, मेरु पर्वत के तुल्य अपार धन हो, किंतु गुरु के श्रीचरणों में यदि मन आसक्त न हो तो इन सारी उपलब्धियों से क्या लाभ । 2. सुन्दरी पत्नी, धन, पुत्र-पौत्र,
सफलता का आध्यात्मिक नियम “अनासक्ति का नियम” है। इस नियम के अनुसार व्यक्ति को भौतिक संसार में कुछ भी प्राप्त करने के लिए वस्तुओं के प्रति मोह त्यागना होगा। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि वह अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए अपने उद्देश्यों को ही छोड़ दे। उसे
ध्यान टिकाने की कला बहुत से लोग सीखना चाहते हैं, परंतु अलग-अलग कारणों से। कुछ लोग शांति पाने के लिए इसे सीखना चाहते हैं तो कुछ लोग शारीरिक स्वास्थ्य में लाभ के लिए। कुछ लोग इसका अभ्यास अपनी एकाग्रता बढ़ाने के लिए करते हैं, ताकि अपने काम या अध्ययन में बेहतर हो पाएं। कुछ इ
एक मिल मालिक के दिमाग में अजीब-अजीब ख्याल आया करते थे। जैसे सारा संसार मिल हो जाएगा, सारे लोग मजदूर और वह उनका मालिक या मिल में और चीजों की तरह आदमी भी बनने लगेंगे, तब मजदूरी भी नहीं देनी पड़ेगी, वगैरा-वगैरा। एक दिन उसके दिमाग में ख्याल आया कि अगर मजदूरों के चार हाथ हो त
एक बार महर्षि वशिष्ठ महर्षि विश्वामित्र के आश्रम में गए। महर्षि विश्वामित्र ने वशिष्ठ का बड़ा स्वागत - सत्कार और आतिथ्य किया। जब वशिष्ठ जी चलने लगे तो विश्वामित्र ने उन्हें अपनी दस वर्ष की तपस्या का पुण्यफल उपहास्वरूप भेंट किया। बहुत दिनों बाद संयोगवश विश्वामित्र जी महर्
अकसर यह सवाल सबके मन में आता है कि भगवान श्रीकृष्ण के भांजे और अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु महाभारत के युद्ध में सबसे पहले वीरगति को क्यों प्राप्त हुए ? इसके पीछे एक रोचक कथा है। इसी कथा में यह भी पता लगता है कि किन देवताओं और राक्षसों ने नया जन्म लेकर महाभारत का युद्ध लड़ा।
मान्यता है कि एकमात्र पूर्ण अवतार श्री कृष्ण ही हुए हैं। बाकी अवतार अंश यानी छह,आठ,दस या बारह कलाओं के अवतार हैं। श्रीकृष्ण सोलह कलाओं के अवतार हैं। सोलह कलाओं में मनुष्य और दिव्य की जो भी क्षमतायें हो सकती हैं, पूरी तरह निखर कर आती हैं। फिर श्रीकृष्ण स्वयं भी कहते हैं
बड़े भाग मानुष तन पावा। सुर दुर्लभ सद ग्रंथन्हि गावा।। &
कर्तव्य पालन की इच्छा में व्यवधान आने से क्रोध उत्पन्न हो जाता है और कर्तव्य पालन की इच्छा पूर्ण होने से लोभ उत्पन्न हो जाता है। जो मनुष्य दोनों स्थितियों में सम-भाव में रहता हुआ निरन्तर अपने कर्तव्य पालन में लगा रहता है, वह क्रोध, लोभ और कामना रूपी सीढ़ियों को पार करके